Meri Bhavna
Deepshikha Jain
9:25प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरण आयो सरण जी । यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरण जी ॥ (१) तुम ना पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकार जी । या बुद्धि सेती निज ना जान्यो, भ्रम गिन्यो हितकार जी ॥ (२) भव विकट वन में करम बैरी, ज्ञान धन मेरो हरयो । तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होए, अनिष्ट गति धरतो फिरयो ॥ (३) धन्य घड़ी यो धन्य दिवस यो ही, धन्य जनम मेरो भयो । अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लाख लयो ॥ (४) छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरें । वसु प्रातिहार्य अनंत गुण जुट, कोटि रवि छवि को धरें ॥ (५) मिट गयो तिमिर मिथ्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो । मो उर हरष एसो भयो, मनु रंक चिंतामणि लयो ॥ (६) मैं हाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुम चरण जी । सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरन जी ॥ (७) जाचूँ नहीं सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथ जी । "बुध" जाचहूँ तुम भक्ति भव भव, दीजिये शिवनाथ जी ॥ (८)