Sunta Hai Guru Gyani - Kabir

Sunta Hai Guru Gyani - Kabir

Pt.Kumar Gandharva

Длительность: 11:02
Год: 1992
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Текст песни

सुनता है गुरु ज्ञानी ।
गगन में आवाज हो रही, झीनी झीनी झीनी ।। टेक।।

पहिले आये नादबिंदु से, पीछे जमाया पानी ।
सब घट पूरन पूर रह्या है, अलख पुरुष निर्वाणी, हो जी ।। १ ।।
वहां से आया, पटा लिखाया, तृष्णा तोउ ने बुझाई ।
अमृत छोड़ छोड़ विषय को धावै, उलटी फास फ़सानी, हो जी ।। २ ।।
गगन मण्डल में गौ बियानी, भी पै दई जमाया ।
माखण माखण संतों ने खाया, छाछ जगत बपरानी, हो जी ।। ३ ।।
बिन धरती एक मण्डल दीसे, बिन सरोवर ज्यूँ पानी रे ।
गगन मण्डल बीच होय उजियारा, बोले गुरु मुखबानी, हो जी ।। ४ ।।
ओहम् सोहम् बाजा बाजे, त्रिकुटी धाम सुहानी रे ।
इड़ा पिंगला सुखमन नाड़ी, सुन धजा फहरानी, हो जी ।। ५ ।।
कहे कबीरा सुनो भाई साधो, जाई अगम की बानी रे ।
दिन भर रे जो नजर भर देखे, अजर अमर वो निशानी, हो जी ।। ६ ।।