Ud Jayega Hans Akela
Pt. Kumar Gandharva
6:15सुनता है गुरु ज्ञानी । गगन में आवाज हो रही, झीनी झीनी झीनी ।। टेक।। पहिले आये नादबिंदु से, पीछे जमाया पानी । सब घट पूरन पूर रह्या है, अलख पुरुष निर्वाणी, हो जी ।। १ ।। वहां से आया, पटा लिखाया, तृष्णा तोउ ने बुझाई । अमृत छोड़ छोड़ विषय को धावै, उलटी फास फ़सानी, हो जी ।। २ ।। गगन मण्डल में गौ बियानी, भी पै दई जमाया । माखण माखण संतों ने खाया, छाछ जगत बपरानी, हो जी ।। ३ ।। बिन धरती एक मण्डल दीसे, बिन सरोवर ज्यूँ पानी रे । गगन मण्डल बीच होय उजियारा, बोले गुरु मुखबानी, हो जी ।। ४ ।। ओहम् सोहम् बाजा बाजे, त्रिकुटी धाम सुहानी रे । इड़ा पिंगला सुखमन नाड़ी, सुन धजा फहरानी, हो जी ।। ५ ।। कहे कबीरा सुनो भाई साधो, जाई अगम की बानी रे । दिन भर रे जो नजर भर देखे, अजर अमर वो निशानी, हो जी ।। ६ ।।