Kaahe Re
Antariksh
5:48कहाँ हूँ मैं किन सड़कों पे मैं, खोया हूँ कौन हूँ मैं क्या मेरा नाम अनजाने चेहरों के खाली आँखों में अपनी कहानी है लिखी आँखें बंद करके चलते चलते यह मैं कहाँ आ पहुंचा हूँ इन जालों में फसते फसते अब निकल न पाऊँ जंजीरों में बंधे बंधे ये मैं कहाँ जा रहा हू रुक के भी मैं सोचूँ न साँसों को भूल कर अपनों से मुँह मोड़ कर हम चले, धीरे धीरे वक़्त की इन लहरों में भीड़ के इस कहर में बहते हुए, धीरे धीरे (ओ ओ ओ) वो ओ ओ वो ओ ओ ओ अँधेरे से निकलना चाहूँ उजाले से क्यों डरता हूँ परछाइयों की गहराईयों में डूबा जाऊं आँखें बंद करके चलते चलते यह मैं कहाँ आ पहुंचा हूँ इन जालों में फसते फसते अब निकल न पाऊँ जंजीरों में बंधे बंधे ये मैं कहाँ जा रहा हू रुक के भी मैं सोचूँ न अपनी ही धड़कन से हम पराये हुए और चले धीरे धीरे अपनों की दूरियां हम से कुछ कहे न मर मिटे धीरे धीरे वो ओ ओ वो ओ ओ ओ साँसों को भूल कर (उ उ उ) अपनों से मुँह मोड़ कर (उ उ उ) हम चले, धीरे धीरे (उ उ उ) वक़्त की इन लहरों में (उ उ उ) भीड़ के इस कहर में (उ उ उ) बहते हुए, धीरे धीरे वो ओ ओ वो ओ ओ ओ