Sare Shikve Gile
Anuradha Paudwal | Mohd. Aziz
6:09मिठी मिठी सर्दी है भीगी भीगी रातें हैं ऐसे में चले आओ फागुन का महीना है मौसम मिलन का है अब और ना तड़पाओ सर्दी के महीनों में हो माथे पे पसीना है मिठी मिठी सर्दी है कुर्बान जाऊं उस दिलरुबा के कुर्बान जाऊं उस दिलरुबा के पलकों पे रखे जमी से उठा के पिया मेरे दिल में कहीं तेरे सिवा कोई नहीं धोखा मुझे देना ना देना ना कभी इस नूर की वादी में ऐ यार तेरा चेहरा सहकर उठा जा, कुदरत का नगिना है\ मिठी मिठी सर्दी है जब से सनम हम तेरे हुए हैं जब से सनम हम तेरे हुए हैं तेरी मोहब्बत में खोए हुए हैं आंखें मेरी देखे जिधर बस तू ही तू है उधर कभी मेरी आंखों से खोना खोना ना कभी बर्फीली घटाओं में क्या चांदनी बिखरी है ऐसे में जुदा रहकर जीना कोई जीना है मौसम मिलन का है नरगीसी आंखें मयखाना जैसे नरगीसी आंखें मयखाना जैसे सच होगा लेकिन मनु में कैसे मुझे तो नशा आ गया देखो अजी रहम-ए-हया पिया मेरे टूटे रो टूटे ना टूटे ना कभी दुनिया में रहे साकी हाय तेरा मयखाना दो गंट सहीं लेकिन इन आंखों से पीना है ओ मिठी मिठी सर्दी है भीगी भीगी रातें हैं ऐसे में चले आओ फागुन का महीना है ओ मिठी आह मिठी सर्दी है, आह मौसम मिलन का है