Gudugudiya Sedi Nodo
Raghu Dixit
6:17नदिया की पुलिया पे या चाय की टपरी पे हम-तुम कहाँ पे मिलें? घूरे हैं बत्तियाँ, जागा शहर है दो दिल कहाँ पे मिले? किसी शाम को था खिड़की पे सोया पलकों में झपकी लगी किसी ख़्वाब में गुम डिबिया में बैठे चुपके से थे तुम मिले बे-पनाह, यहाँ तो बहुत भीड़ है तू बता, कहाँ पे कहाँ हम मिलें? दो साँसों के बीच एक आँगन सजा उस आँगन में हम-तुम मिलें दो साँसों के बीच एक आँगन सजा उस आँगन में हम-तुम मिलें बाल ना हैं कसने, लब ना है रंगने सजना ना तुमको वहाँ ना तो डराए वहमी ज़माना बस हम-ही-हम हैं वही सखी रे, सखी रे चल, डालें डेरा वहीं बेहुदी ज़मीन की दास्ताँ है ये नहीं घड़ियाँ वहाँ पे है आलसी है भरी हर-पल में सौ ज़िंदगी दो साँसों के बीच एक आँगन सजा उस आँगन में हम-तुम मिलें दो साँसों के बीच एक आँगन सजा उस आँगन में हम-तुम मिलें