Hanuman Chetavani
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1:45गाथा तो बहुत सुनी होगी पर आज जो सुनाने जा रहा हूँ वो गाथा है उस महाकाव्य की जिसका इतिहास हम सबको गौरवान्वित करता है जिसका नाम है रामायण तो उस महाकाव्य से आज जो गाथा सुनाई जायेगी वो है राम और रावण संवाद राम तुम्हें चुनौती देकर खोल दिए विनाश द्वार मैं तीन लोक का स्वामी मुट्ठी में रखता हूँ संसार यह जग भी डगमग डोले सर पे रख लूँ मैं कैलाश राज और देव-असुर भी कर ना पाए खंडित मेरा अहंकार फिर रावण माना, तुम परम भक्त और ज्ञानी हो महादेव के त्रिशूल के भाँति तुम तो शक्ति-शाली हो पर अधर्म का मार्ग चुन कर तुमने शक्ति का दुरुपयोग किया अब विनाश है तेरा निश्चित तुझे क्रोध नहीं यह बोध किया अहंकार में अंधा होकर खुद की माया में ही खोकर दुराचार से घृणित होकर तुमने न अब आभास किया यह अन्त समय है तेरा आया काम न आएगी तेरी माया महादेव से आशीष है पाया उसका न सदुपयोग किया लंकेश हूँ मैं रावण हूँ मैं लंकापति दशानन हूँ मेरे आगे तो देव न कुछ तुम राम भी पाओगे भेद न कुछ मैं महादेव का परम भक्त मैं सर्वज्ञानी हूँ समस्त मैं विश्वव्यापी हूँ सशक्त मैं समय के वेग सा हूँ व्यक्त राम त्वं मानवः किन्तु तव शक्ति असीमा अस्ति मम अहंकारं च तव समक्षं न अवशिष्यति हे रावण धनुष उठाओ, संहार करो ना शक्ति का व्याख्यान करो बाली की बगल में रहने वाले अब मेरा भी प्रहार सहो इन दशों शीश का मर्दन करके प्रत्यंचा परिणाम देखो आकाश में गर्जन करने वाले युद्ध का अब परिणाम देखो काटत बढ़हिं सीस समुदाई जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा राम बिभीषन तन तब देखा नाभिकुंड पियूष बस याकें नाथ जिअत रावनु बल ताकें सुनत बिभीषन बचन कृपाला हरषि गहे कर बान कराला विभीषण बोले श्रीराम से अमृत निवास है नाभि में यही उसी के बल पे जीता है यह सुनकर फिर श्रीराम ने प्रत्यंचा को खींचा है 31 बाणों से एक साथ ही नाभि कुण्ड को भेदा है लहूलुहान है भूमंडल घुटनों पर रावण बैठा है श्री राम लहूलुहान है भूमंडल घुटनों पर रावण बैठा है गिरा डेढ़ फिर भूतल पर असत्य पे सत्य विजेता है