Monta Re
Swanand Kirkire
3:58तू किसी रेल सी गुज़रती है तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ तू भले रत्ती भर ना सुनती हो मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ किसी लम्बे सफर की रातों में तुझे अलाव सा जलाता हूँ तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ काठ के ताले हैं आँख पे डाले हैं उनमें इशारों की चाबियाँ लगा काठ के ताले हैं आँख पे डाले हैं उनमें इशारों की चाबियाँ लगा रात जो बाकी है शाम से ताकी है नीयत में थोड़ी ई ई ई ई नीयत में थोड़ी खराबियाँ लगा खराबियाँ लगा मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा तुझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ थरथराता हूँ (नौ दे नौ) थरथराता हूँ (र नन ना द द दा) थरथराता हूँ (नौ दे नौ दे नौ दे नौ ओ)